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कभी खुद को बेकार मत समझो – एक गधे की अनोखी कहानी

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हरिराम अपनी झोंपड़ी के बाहर बैठा, दूर खेतों की ओर देख रहा है। तपती दोपहर की धूप अब ठंडी छाँव में बदल चुकी है। खेतों की मेड़ों पर हरियाली लहरा रही है और दूर पहाड़ियों के पीछे सूरज धीरे-धीरे ढल रहा है।कभी खुद को बेकार मत समझो

उसके पास बैठा भोला, बूढ़ा गधा, अपनी थकी आँखों से धीरे-धीरे साँस ले रहा है। उसकी पीठ झुक गई है, चमड़ी पर झुर्रियाँ साफ़ दिख रही हैं और पाँव अब पहले जैसे मज़बूत नहीं रहे। मगर आँखें अब भी मासूम हैं – वही भरोसा, वही अपनापन।

गाँव में चिड़ियों की चहचहाहट और हल्की ठंडी हवा हर किसी को एक नई शुरुआत का अहसास दिला रही है, मगर हरिराम का मन उलझा हुआ है।

“भोला…” वह धीरे से कहता है, “अब तू बूढ़ा हो गया है। तेरे बिना भी मेरा काम चल जाएगा, पर तेरा क्या करूँ?”

भोला उसकी ओर देखता है – चुपचाप, बिना किसी सवाल या उम्मीद के। जैसे वो समझ गया हो कि अब वक्त आ गया है।

हरिराम का मन दो भावनाओं के बीच झूल रहा है – एक तरफ व्यावहारिकता, दूसरी तरफ अपनापन। वर्षों से भोला ने उसके खेतों में हल खींचा, ईंधन ढोया, पानी लाया – लेकिन अब वह सिर्फ बोझ बन गया है।

“शायद अब इसे जंगल में छोड़ देना ही ठीक रहेगा,” वह बुदबुदाता है, जैसे खुद को समझा रहा हो।

अगले दिन सुबह-सुबह, हरिराम भोला को रस्सी से बाँधकर जंगल के अंदर ले जाता है। चारों ओर पक्षियों की आवाज़ें गूंज रही हैं, पत्तों की सरसराहट है, लेकिन दोनों के बीच एक गहरा सन्नाटा है।

एक घने पेड़ के नीचे पहुँचकर, हरिराम भोला को बाँध देता है। कुछ देर चुप खड़ा रहता है, फिर कहता है,
भोला, तू बहुत साल मेरी मदद करता रहा, लेकिन अब मैं तुझे और नहीं पाल सकता। अलविदा।”

भोला स्थिर खड़ा रहता है। उसकी आँखों में न कोई आँसू, न कोई गिला-शिकवा – बस एक गहरी शांति।

हरिराम मुड़कर चला जाता है…

🐅 भूखे शेर के सामने हँसी

जैसे ही वो दूर होता है, झाड़ियों से एक भूखा शेर निकलता है। उसकी आँखों में भूख और हैरानी दोनों हैं – एक गधा? अकेला? बंधा हुआ?

वो धीरे-धीरे भोला की ओर बढ़ता है।

भोला उसे देखता है और… मुस्कराता है।

फिर अचानक ज़ोर से हँसने लगता है।

शेर ठहर जाता है – चौंकता है।
“मैं तो सोच रहा था तुझे खा जाऊं,” वो गुर्राता है, “लेकिन तू हँस क्यों रहा है?”

भोला धीरे से कहता है,
“क्योंकि तू सोच रहा है कि तू मुझे खा जाएगा, और मेरा मालिक सोच रहा है कि मैं बेकार हो गया हूँ… लेकिन देख, मैं अब भी दूसरों को सोचने पर मजबूर कर रहा हूँ।”

शेर कुछ पल के लिए चुप हो जाता है। पहली बार उसने किसी शिकार को ऐसा आत्मविश्वास से बोलते देखा था। वो गहरी साँस लेता है और बिना कुछ कहे जंगल में वापस लौट जाता है।

🌳 एक इंसान का पश्चाताप

उसी समय, दूर से हरिराम वापस आता है – दरअसल, वो अपनी लाठी वहीं भूल गया था। पेड़ के पास पहुँचते ही वो जो दृश्य देखता है, उससे उसकी आँखें नम हो जाती हैं।

वो भोला और शेर के बीच की बातचीत सुन चुका था।

भोला…” उसकी आवाज़ काँपती है, “तू सच में भोला नहीं, सबसे समझदार है। मैंने तुझे गलत समझा।”

वो रस्सी खोलता है और भोला को गले से लगा लेता है। उसकी आँखों से पश्चाताप के आँसू बहने लगते हैं – ये सिर्फ आँसू नहीं थे, एक इंसान का अपने पुराने साथी के लिए लौटता सम्मान था।

🚶‍♂️ घर की ओर वापसी

वो दोनों साथ-साथ गाँव की ओर लौटने लगते हैं।

रास्ते में, हरिराम सोचता है – “कभी-कभी जो हमें बेकार लगता है, वही असली जीवन का दर्पण होता है।”

भोला के चेहरे पर अब शांति और संतोष की मुस्कान है – जैसे वो जानता हो, कि उसका वजूद अब फिर से मायने रखता है।

📜 कहानी से सीख:

“कभी भी खुद को बेकार मत समझो। दुनिया तुम्हारी क़ीमत तब समझती है जब तुम मुश्किल में भी मुस्कुरा कर खड़े रहो।”

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