यह कहानी है चार दोस्तों की — Sunny, Chiku, Jignesh और Balli की।
चारों की दोस्ती कॉलेज के ज़माने से है। एक ऐसा रिश्ता जिसमें कोई औपचारिकता नहीं, कोई दिखावा नहीं – बस फालतू बातों की भरमार, नोंक-झोंक से भरा प्यार,
और वो वादा जो कभी ज़ुबान से नहीं निकला, लेकिन दिल से निभाया गया – “साथ रहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए।”
कॉलेज खत्म होने के बाद ज़िंदगी धीरे-धीरे एक boring routine में बदल चुकी थी। नौकरी, मीटिंग, चाय और मोबाइल स्क्रॉलिंग – दिन निकल जाता और कुछ नहीं बदलता।
एक दिन Sunny अपने घर के सोफे पर बैठा था। सामने टीवी चल रहा था, लेकिन ध्यान कहीं और था। अचानक उसके चेहरे पर हल्की सी चमक आई, जैसे किसी ने नींद से जगा दिया हो।
“बस बहुत हुआ!” वह बोला और फ़ोन उठाया।
WhatsApp ग्रुप – “कांड पार्टी 4.0”
Sunny: “भाईलोग, इस बार वीकेंड पे ट्रेकिंग करेंगे… मोबाइल, इंटरनेट, सब छोड़ के!”
Chiku तुरंत typing में आया –
“तूने पिछली बार हमें झील के नाम पे गटर दिखाया था, अब ट्रेकिंग का नाम लिया तो मुंह फोड़ दूंगा!”
पर फिर भी… कहीं ना कहीं चीकू को ये आइडिया पसंद आया। Jignesh ने पूछा – “कहाँ चलना है?”
Balli ने लिखा – “अगर ट्रेकिंग में भी भूत-प्रेत निकले, तो Sunny तेरी पूजा वही पर कर दूँगा।”
थोड़ी देर की बहस, थोड़ी हँसी-मज़ाक के बाद सभी मान गए। जगह फिक्स नहीं हुई थी, लेकिन Sunny ने भरोसा दिलाया – “इस बार कुछ स्पेशल है।”
शनिवार की सुबह 7 बजे चारों एक पुरानी SUV में बैठकर निकल पड़े। गाड़ी में तेज़ म्यूज़िक, चिप्स के पैकेट्स और ढेर सारी मस्ती।
सड़कें पहले चिकनी थीं, फिर थोड़ी उबड़-खाबड़ होने लगीं।
Sunny ने अपना पुराना GPS ऐप खोला।
“ये रहा जंगल वाला शॉर्टकट… जंगल का राजा भी नहीं गया होगा यहाँ।”
Jignesh ने नाश्ते के पैकेट निकाल लिए, Chiku अपने कैमरे से वीडियो बनाने लगा, और Balli तो बस हर पेड़ को देखकर कहता – “ये भूत वाला पेड़ लग रहा है।”
रास्ता पहले पतला हुआ, फिर पेड़ों से घिर गया, और फिर एक जगह GPS ने बड़ी अजीब आवाज़ में कहा –
“You have arrived at your destination.”
चारों हक्के-बक्के रह गए। आसपास देखा – कोई कैंप साइट नहीं, कोई ट्रेकिंग ग्रुप नहीं – बस ऊँचे-ऊँचे पेड़, घनी झाड़ियाँ और एक अजीब सी ख़ामोशी।
“भाई ये तो जंगल जैसा लग रहा है,” Chiku डरते हुए बोला।
Balli बोला – “अरे जंगल ही है पगले, तभी तो पेड़ हैं, मिट्टी है, और हमारे पास रास्ता नहीं है!”
तभी एक बड़ा पत्थर दिखा, और उसके पास बैठा था – एक बंदर।
बंदर ने धीरे से उनकी ओर देखा, उठ खड़ा हुआ, दोनों हाथ कमर पर रखे और गुस्से में बोला –
“अबे फिर से इंसान आ गए? पिछली बार वाले तो चिप्स गिरा के भाग गए थे!”
चारों वहीं फ्रीज़ हो गए।
Sunny की पानी की बोतल उसके हाथ से गिर गई।
Chiku के पैर कांपने लगे।
Jignesh ने चश्मा उतार के पोंछा – शायद उसे भ्रम हो रहा हो।
Balli धीरे से बोला – “भाई… बंदर… बात कर रहा है… और हमें समझ भी आ रही है!”
बंदर बोला – “हाँ, समझ आ रही है न? मैं कोई आम बंदर नहीं हूँ… मैं हूँ Raghuveer – जंगल का रहस्यमय गाइड!”
सबने सोचा – “कोई trained बंदर होगा, या कोई prank चल रहा है।”
लेकिन फिर बंदर ने कहा – “अगर इस जंगल से सही-सलामत बाहर जाना है, तो तीन परीक्षा पास करनी होंगी। वरना यहीं सड़ोगे।”
टास्क 1: पीपल की पहेली
जैसे ही चारों दोस्त बंदर के पीछे-पीछे चलकर थोड़ी दूरी पर पहुँचे, वहाँ एक बहुत ही पुराना पीपल का पेड़ था। उसकी जड़ें ज़मीन से बाहर निकलकर एक-दूसरे से लिपटी हुई थीं,
जैसे किसी सदियों पुराने रहस्य को छुपा रखा हो। उसकी शाखाओं पर सूखे कपड़े की तरह कुछ झूल रहा था।
बंदर एक टहनी पर उछलकर बैठ गया और बोला –
“स्वागत है पहली परीक्षा में – पीपल की पहेली।”
चारों ने ऊपर देखा। पेड़ की शाखाओं से कागज़ के पाँच टुकड़े लटक रहे थे, जैसे वो हवा में किसी रहस्यमय मंत्र की तरह झूल रहे हों।
बंदर ने एलान किया –
“इन टुकड़ों पर पाँच सवाल लिखे हैं। तुम्हें एक-एक कर सवाल पढ़ने हैं और सही जवाब देना है। हर सही जवाब पर पीपल की शाखा हरे रंग की हो जाएगी। लेकिन अगर गलत हुआ… तो…”
उसने अपनी उँगली नीचे की ओर इशारा की।
चारों ने देखा – पेड़ के नीचे गीली काली मिट्टी थी, जो देखने में कीचड़ जैसी लग रही थी, पर अजीब सी चमकती भी थी। जैसे किसी ने उसमें तेल मिला दिया हो।
Balli ने धीरे से कहा – “भाई… ये कीचड़ तो ताजा ताजा लग रहा है… मतलब कुछ ग़लत हुआ तो हम इसी में घुसेंगे?”
बंदर सिर हिलाते हुए बोला –
“बिलकुल… और अगर तीन सवाल तक सही कर लिए, तो बाकी के दो छोड़ भी सकते हो।”
Sunny ने कहा – “चलो, मैं शुरू करता हूँ।”
उसने पहला कागज़ निकाला। सवाल था:
“पेड़ को पानी कौन पिलाता है?”
Chiku फुसफुसाया – “सिंचाई विभाग?”
Balli बोला – “नहीं रे! किसान!”
Sunny ने कहा – “बारिश।”
पेड़ की एक शाखा अचानक हरी हो गई। हल्की सी हवा चली और शाखा हौले से झूलने लगी।
बंदर ताली बजाकर बोला –
“एकदम सही! पेड़ को सबसे अच्छा पानी बारिश देती है। इंसानों की तरह रिश्वत नहीं माँगती!”
अब बारी थी Jignesh की।
उसने दूसरा सवाल निकाला –
“साँप सीढ़ी में साँप क्यों हारता है?”
Chiku हँस पड़ा – “क्योंकि वो अपने ही खेल में दूसरों को ऊपर चढ़ा देता है!”
Jignesh बोला – “भाई, ये तो मज़ाक है… कहीं ये सवाल मज़ेदार ही ना हों?”
Balli बोला – “लग तो ऐसे ही रहा है। तू बोल – जवाब क्या है?”
Jignesh ने मुस्कराते हुए कहा – “क्योंकि वो खुद नीचे गिराने में बिजी रहता है, ऊपर चढ़ना भूल जाता है।”
पेड़ की दूसरी शाखा सुनहरी हो गई। बंदर ने आँखें चौड़ी करके कहा –
“वाह! इंसान होते हुए भी दार्शनिक जवाब दिया। चलो, दो में दो सही।”
अब तीसरा सवाल उठाया Chiku ने। सवाल था –
“पेड़ कभी गिरता क्यों नहीं?”
Balli ने झट से कहा – “क्योंकि उसके पास roots होते हैं… जड़ें।”
Sunny ने कहा – “कभी-कभी तू भी philosophical हो जाता है, Balli!”
Chiku ने वही जवाब बोला – “क्योंकि उसकी जड़ें मज़बूत होती हैं।”
शाखा हरी नहीं हुई… बल्कि एक धार की तरह कीचड़ से बुलबुले निकलने लगे।
बंदर बोला – “गलत जवाब!”
धड़ाम!! अचानक ज़मीन काँपी, और Chiku सीधा कीचड़ में धँस गया। आधा शरीर अंदर चला गया।
Chiku चिल्लाया – “भाई! ये real कीचड़ है! डियोड्रेंट लाना पड़ेगा बाद में!!”
Jignesh उसे खींचने दौड़ा, पर तभी चौथा सवाल उसके हाथ में आ गया।
“एक पेड़ और एक इंसान में क्या समानता है?”
Jignesh, जो Chiku को खींचते-खींचते घुटनों तक खुद भी कीचड़ में फँस चुका था, गुस्से में बोला –
“दोनों को वक्त पर काट दिया जाता है!”
पेड़ की शाखा ने झुरझुरी ली और… उससे एक फूल गिरा। शाखा हरी नहीं हुई।
बंदर हँसी नहीं रोक पाया। उसने ताली बजाकर कहा –
“इंसानों की समझदारी की कमी है, लेकिन हँसी की कोई कमी नहीं!”
अब Chiku और Jignesh दोनों काले कीचड़ से लथपथ बाहर निकले।
Balli और Sunny ने उन्हें बाहर खींचा। दोनों कीचड़ से सराबोर थे – एक आँख कीचड़ में बंद, टीशर्ट पर पत्तियाँ चिपकी हुईं।
Balli ने कहा – “भाई, तुम्हें देख के लग रहा है जैसे हॉरर फिल्म के बैकग्राउंड आर्टिस्ट हो।”
Sunny ने पूछा – “आखिरी सवाल पूछें क्या?”
बंदर ने सिर हिलाया – “चाहो तो पूछो… – ये तुम्हारी सोच पर निर्भर करता है।”
Sunny ने आखिरी सवाल उठाया –
“कौन ज़्यादा जीता है – पेड़ या इंसान?”
चारों एक पल के लिए चुप हो गए।
फिर Sunny ने कहा –
“पेड़। क्योंकि वो देने के लिए जीता है, इंसान सिर्फ लेने के लिए।”
एक दम से सारी शाखाएँ हरी हो गईं। हवा चली। पीपल की पत्तियाँ बजने लगीं जैसे कोई ताली बजा रहा हो।
बंदर मुस्कराया –
“वाह रे इंसान! तूने आज इंसानियत वाली बात कर दी।”
पीछे खड़े Jignesh और Chiku एक-दूसरे कीचड़ में सने चेहरे को देखकर हँसने लगे।
Balli बोला – “टास्क तो पास कर लिया, अब ये गंध कैसे हटाएँ?”
Chiku बोला – “भाई, अब जो भी अगली परीक्षा हो ना… dry-cleaned zone में हो!”
बंदर ने एक गहरी साँस ली और बोला –
“एक परीक्षा खत्म… अब आओ मगरमच्छों की दुनिया में… अगला खेल वहीं शुरू होगा।”
टास्क 2: मगरमच्छों का पुल
पीपल की पहेली के बाद चारों दोस्त बुरी तरह थके हुए थे।
Chiku और Jignesh के कपड़े कीचड़ से भरे थे, Sunny की पानी की बोतल अब आधी से भी कम बची थी
और Balli बार-बार अपने बालों से पत्तियाँ निकाल रहा था।
लेकिन बंदर – जो अब तक सबका “गाइड” बना हुआ था – वैसे ही जोश में था।
वो उछलते-कूदते आगे बढ़ा और अचानक एक पेड़ों के झुरमुट के पीछे से चिल्लाया
“लो भई, अब आ गया असली मज़ा! टास्क 2!”
चारों धीरे-धीरे वहाँ पहुँचे और देखा कि उनके सामने एक संकरा सा लकड़ी का पुल था – बिल्कुल हिलता हुआ, पुराना, और चरमराता सा।
और उसके नीचे… नीचे तो नज़ारा ही रूह कंपा देने वाला था।
गंदले पानी से भरे तालाब में दर्जनों मगरमच्छ मुँह खोले बैठे थे – जैसे सालों से भूखे हों और आज अचानक लंच मिल गया हो!
बंदर चिल्लाया – “एक-एक कर के पार करना है। और ध्यान रहे – कोई भी क़दम गलत पड़ा, तो ये नीचे वाले तुम्हें सलाद समझ लेंगे।”
Chiku ने हल्की काँपती आवाज़ में कहा, “भाई… ये ‘adventure’ है या ‘andar danger’?”
Balli ने कुछ पल तक उस पुल को देखा। फिर अपने भारी शरीर और डर को एक तरफ रखकर कमर कस ली। “मैं जा रहा हूँ,” उसने कहा और एक गहरी साँस लेकर पहला क़दम बढ़ाया।
हर बार जब वो आगे बढ़ता, लकड़ी की पुलिया थोड़ी और नीचे धँसती। नीचे के मगरमच्छ जैसे हर हलचल पर उछल पड़ते – एक ने तो अपनी पूँछ भी हवा में मारी, जैसे ऑर्डर का इंतज़ार कर रहा हो।
Sunny और बाकी तीनों की साँस अटकी हुई थी।
Balli ने जैसे-तैसे खुद को बैलेंस किया और आखिरकार पुल पार कर ही गया।
सबने तालियाँ नहीं बजाईं, बस चैन की साँस ली – क्योंकि उस वक़्त हाथ कांप रहे थे।
अब बारी थी Jignesh की। हमेशा practical बातें करने वाला Jignesh आज डरा नहीं था – उल्टा उसके हाथ में उसका स्नैक्स का बैग था, जो वो बार-बार चेक कर रहा था।
जैसे ही उसने पहला क़दम रखा, नीचे से मगरमच्छों में हलचल मच गई।
“भाई… ये कुछ ज्यादा excited लग रहे हैं…” उसने कहा।
बंदर ने पीछे से चिल्लाया – “क्योंकि उनके लिए ताज़ा chips गिर चुके हैं! लगता है किसी के बैग से गिरा होगा।”
Jignesh ने नीचे देखा और चौंक कर बोला – “अबे! ये तो मेरे वाले चुरमा लड्डू हैं!”
Sunny ने फट से जवाब दिया – “तू लड्डू पे ध्यान दे रहा है या अपनी जान पे? भाग उप्पर!”
Jignesh किसी तरह दौड़ता हुआ-डोलता हुआ पार पहुँचा, लेकिन उसका आधा स्नैक्स नीचे गिर चुका था। वो थोड़ी देर तक नीचे झाँकता रहा, फिर बोला – “इतने भयानक चेहरे मैंने बस अपनी बॉस की मीटिंग में देखे हैं।”
अब Chiku की बारी थी। उसने तीन बार गहरी साँस ली, फिर मुँह में कुछ बुदबुदाया – शायद “ओम नमः शिवाय” या “मम्मी बचा लो” – और फिर पहला क़दम रखा। वो हल्के से चलता रहा, और जैसे-तैसे पूरी पुलिया पार कर ली।
“Sunny! अब तू!” Balli चिल्लाया।
Sunny ने चुपचाप मोबाइल की जेब चेक की, फिर बोला – “अगर मैं नहीं बचा, तो मेरा फोन घर भेज देना।” फिर वो हल्के से मुस्कराया, और चढ़ गया पुल पर।
नीचे एक मगरमच्छ ने कुछ खास हरकत की – वो Sunny की चाल से तालमेल बैठाने की कोशिश कर रहा था, जैसे उसे डांस सिखा रहा हो। Sunny ने भी उसी टोन में जवाब दिया, “भाई तू नीचे ही रह, आज नहीं।”
किसी तरह Sunny भी पार आ गया।
चारों दोस्त अब पुल के दूसरी ओर थे, लेकिन सबके चेहरे पर डर, थकान और राहत की अजीब सी मिली-जुली झलक थी। पसीने से तरबतर, दिल अब भी तेज़ी से धड़क रहे थे।
बंदर ने तालियाँ बजाईं – “वाह रे इंसानों! पहली बार कोई टास्क बिना उड़ा दिए पार किया है। थोड़ा हिम्मत दिखा ही दी।”
Jignesh थका हुआ बैठ गया और बोला – “अगर अगला टास्क बिना मगरमच्छ, सांप, या बंदर के हुआ तो मेरी आत्मा तुम्हारी सेवा में खुश रहेगी।”
Chiku ने पानी की आखिरी बूँद Sunny को दी और बोला – “तेरा जंगल शॉर्टकट अब लंबा लगने लगा है।”
Balli ने लंबी जम्हाई ली, “भूत-प्रेत से मिलना तो बाकी है ना? कहीं ये बंदर ही…”
सबने एक-दूसरे की तरफ देखा… फिर बंदर की तरफ। लेकिन बंदर गायब था।
“अबे! वो गया कहाँ?” Sunny ने चौंक कर पूछा।
पीछे से आवाज़ आई – “मैं इधर हूँ, पेड़ पे! तुम तो पार आ गए, अब आगे चलो…”
चारों ने फिर से एक-दूसरे की शक्ल देखी – डर, शक और रोमांच की एक अजीब सी खिचड़ी बनने लगी थी।
टास्क 3: पत्थर का सच
चारों दोस्त मगरमच्छों वाला पुल पार करके थोड़ा आराम कर ही रहे थे कि बंदर फिर से पेड़ों से लटकता हुआ आ गया। इस बार उसके चेहरे पर न कोई मज़ाक, न कोई मस्ती… बस एक रहस्यमयी मुस्कान थी।
“अब अगला टास्क… सबसे खास है,” उसने कहा और अपनी उंगलियों से एक ओर इशारा किया।
चारों दोस्त उस दिशा में चले। वहाँ एक खुला सा मैदान था, जिसके बीचोंबीच पड़ा था – एक बहुत बड़ा, पुराना, काई से ढँका हुआ पत्थर।
उस पत्थर के चारों तरफ सूखी घास थी, मानो वहां सालों से कुछ नहीं उगा हो। और सबसे अजीब बात – पत्थर के ऊपर एक पुराना झूलता हुआ ताला, जिस पर लिखा था — “सच को पहचानो, तभी रास्ता आगे बढ़ेगा।”
Chiku ने सर खुजाते हुए कहा – “भाई, ये पत्थर किसी फिल्म का प्रॉप लग रहा है।”
Jignesh ने पूछा – “इसमें क्या खास है?”
बंदर ने धीमे स्वर में कहा –
“यही वो जगह है… जहाँ मेरी कहानी शुरू हुई थी।”
चारों चौंक गए।
Sunny: “मतलब? तू तो बंदर है…”
बंदर चुप रहा। फिर धीमे-धीरे बोलना शुरू किया –
“मैं… एक इंसान था। नाम था Raghuveer. अकेला, पहाड़ों में घूमने वाला। एक दिन इस जंगल में आया, ट्रैकिंग के लिए… कुछ अजीब सा महसूस हुआ।
एक बूढ़ा आदमी मिला, बोला – ‘इस जंगल में जो खुद को भूल जाए, वही सच्चा राही है।’ मैं हँसा और आगे बढ़ गया… लेकिन लौट के कभी नहीं गया।”
Balli घबरा गया – “मतलब तू… बंदर नहीं, इंसानी आत्मा है??”
बंदर धीरे से मुस्कराया – “हाँ। मेरी आत्मा यहीं बंध गई… इस पत्थर के नीचे ही मेरा शरीर दबा है।
जब तूफान आया था, पेड़ गिरा था, और पत्थर उसी के साथ मुझ पर गिर पड़ा।
लोगों ने सोचा मैं लापता हो गया… पर मैं यहीं फँस गया – एक जानवर की शक्ल में… एक आत्मा की सज़ा में।”
चारों दोस्त अवाक खड़े थे।
एक पल को सब शांत था… बस हवा की सिसकी और बंदर की आवाज़।
Sunny ने धीरे से कहा – “तो हम क्या कर सकते हैं?”
बंदर – “अगर तुम इस पत्थर को हटा सको… मुझे मुक्ति मिल सकती है। पर ध्यान रहे – ये कोई आम पत्थर नहीं है। इसे हटाने के लिए सिर्फ ताकत नहीं, सच चाहिए।”
Chiku ने सवाल किया – “मतलब क्या?”
बंदर आगे बोला – “हर दोस्त को इस पत्थर पर हाथ रखकर अपने अंदर के सबसे बड़े झूठ को कबूल करना होगा… तभी ये पत्थर हल्का होगा।”
पहला सच – Sunny
Sunny आगे बढ़ा। पत्थर पर हाथ रखा।
एक चमक हुई… और एक आवाज़ आई – “तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ?”
Sunny की आँखों में आँसू आ गए। वो धीमे से बोला –
“मैं हमेशा सबको हँसाने की कोशिश करता हूँ… ताकि कोई मेरे अंदर की उदासी ना देखे।”
पत्थर से एक हल्की सी धड़कन आई। जैसे उसका बोझ थोड़ा हल्का हुआ हो।
दूसरा सच – Jignesh
Jignesh थोड़ा डरते हुए आगे आया। हाथ रखा।
“तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ?”
Jignesh बोला –
“मैं practical बनने का दिखावा करता हूँ, पर अंदर से हर चीज़ से डरता हूँ – अकेलेपन से, नाकामयाबी से… और सबसे ज्यादा खुद से।”
फिर से पत्थर में दरार सी आई, हल्की-सी।
तीसरा सच – Chiku
Chiku ने हाथ रखा। आँखें बंद कीं।
“तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ?”
“मैं कहता हूँ कि मुझे किसी की परवाह नहीं… पर सच ये है कि मैं सबके बिना एक पल भी नहीं जी सकता। मैं सबसे ज़्यादा प्यार अपने दोस्तों से करता हूँ।”
अब पत्थर के किनारे से घास हटने लगी थी।
चौथा सच – Balli
Balli थोड़ा रुक कर बोला – “सच कबूल करना… हमेशा सबसे मुश्किल होता है।”
उसने हाथ रखा।
“तुम्हारा सबसे बड़ा झूठ?”
“मैं हमेशा कहता हूँ कि मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता… लेकिन हर बार जब कोई मज़ाक उड़ाता है, तो मेरी आत्मा अंदर से रोती है।”
अब पत्थर में कंपन हुआ।
एक ज़ोर की आवाज़ हुई – धड़ाम!!
पत्थर हिल गया। उसके नीचे से सूखे पत्ते, पुराने कपड़े, और एक टूटा हुआ कैमरा बाहर आया।
चारों ने मिलकर पत्थर को सरकाया।
नीचे एक अधजला कंकाल था… और उसके पास – एक पुरानी डायरी।
बंदर अब ज़मीन पर बैठ गया – आँखों में आँसू, आवाज़ में सुकून।
“यही मेरा शरीर था… यही मेरी आखिरी कहानी थी… और तुम चारों मेरी आखिरी उम्मीद।”
चारों दोस्त चुपचाप खड़े रहे। फिर Sunny ने बंदर की तरफ हाथ बढ़ाया – “चल, अब तू घर चल।”
बंदर मुस्कराया।
फिर धीरे-धीरे उसकी आकृति बदलने लगी…
बंदर अब धुएँ में बदल रहा था… और उसी धुएँ से एक रौशनी निकली – एक इंसान की आत्मा, मुस्कुराती हुई, शांत।
Raghuveer की आत्मा अब मुक्त हो चुकी थी।
आसमान में हल्की सी बिजली चमकी, लेकिन डराने वाली नहीं – मुक्ति देने वाली।
वापसी
चारों दोस्त वापसी की ओर निकले – रास्ता अब साफ था, जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने उनके लिए सारे काँटे हटा दिए हों।
पेड़ अब उतने डरावने नहीं लग रहे थे। हवा में वो अजीब सी सनसनाहट नहीं थी। और सबसे खास बात – उनके चेहरे पर डर नहीं, सुकून था।
Balli ने मुँह बनाते हुए कहा –
“भाई अगली बार कहीं और चलते हैं… मॉल में Popcorn खाएँगे। भूत नहीं चाहिए मुझे।”
Chiku ने सिर हिलाया –
“और हाँ, अब से जो भी बंदर दिखे… उससे नज़रें चुराकर चलना। बात नहीं करनी!”
Sunny ने मुस्कुराते हुए कहा –
“पर मानना पड़ेगा, इस ट्रेकिंग ने हमें बहुत कुछ सिखाया है…”
Jignesh ने तुरंत जोड़ा –
“हाँ – सबसे बड़ी सीख ये कि GPS कभी Sunny से ना पूछो!”
चारों हँसते-हँसते गाड़ी में बैठे। उन हँसी के ठहाकों में अब डर नहीं, बल्कि दोस्ती की गहराई और जीवन की एक नई समझ थी।
गाड़ी जंगल से निकल गई। रास्ता अब धीरे-धीरे शहर की ओर बढ़ रहा था।
पीछे रह गया वो घना जंगल…
वो पगडंडी…
वो मगरमच्छों वाला तालाब…
और वो बड़ा सा पत्थर…
जो अब भी वहीं पड़ा है –
शांत, रहस्यमय, स्थिर।
शायद किसी और कहानी के इंतज़ार में।
शायद किसी और सच को सुनने के लिए।
