Adhoori Painting -जब अधूरेपन में भी खूबसूरती छुपी हो.
Adhoori Painting
रमेश एक छोटे से कस्बे में रहता था। उसका कमरा छोटा था, छत पर पंखा भी मुश्किल से चलता था, लेकिन दीवारों पर रंगों के निशान हमेशा ताजगी दे जाते थे।
रमेश को पेंटिंग का शौक बचपन से था। उसके पास महंगे ब्रश और कैनवस नहीं थे, पर पुरानी नोटबुक की खाली पीली पन्नियों पर भी वो रंग बिखेर देता था।
हर रविवार को वह छोटी सी लकड़ी की मेज पर अपने रंगों को फैलाता, ब्रश में पानी मिलाता और एक नई पेंटिंग बनाना शुरू कर देता। पेंटिंग में कभी सूरज उगता दिखता, कभी पहाड़ों पर बर्फ गिरती, कभी किसी लड़की की मुस्कान उभरती… मगर रमेश कभी भी अपनी पेंटिंग पूरी नहीं करता था।
कभी आंखें अधूरी रह जातीं, कभी रंग अधूरे रह जाते, कभी चेहरे की मुस्कान बीच में ही रुक जाती।
एक दिन उसकी माँ ने, जो चुपचाप रमेश को दूर से पेंटिंग बनाते देखती रहती थी, हिम्मत करके पूछ लिया,
“बेटा, तू हर बार अपनी पेंटिंग अधूरी क्यों छोड़ देता है?”
रमेश ने उस दिन कुछ नहीं कहा। बस मुस्कुराया, ब्रश धोया, और कमरे से बाहर चला गया। माँ के मन में यह सवाल रह गया।
अगले रविवार फिर वही हुआ। रमेश ने एक लड़की की पेंटिंग बनाई, उसके बालों में फूल लगा दिए, कपड़े रंग दिए, बैकग्राउंड में नीला आसमान बना दिया, पर उसकी आँखें बनाते-बनाते वह रुक गया।
माँ फिर से नहीं पूछना चाहती थी, लेकिन खुद को रोक नहीं पाई।
“रमेश, अगर तू आँखें भी बना देता, तो ये पेंटिंग कितनी सुंदर दिखती!”
रमेश ने धीरे से मुस्कुराकर कहा,
“माँ, जब मैं पूरी पेंटिंग बना देता हूँ, लोग उसे देखकर चले जाते हैं। मगर जब अधूरी छोड़ता हूँ, लोग उसे बार-बार देखने आते हैं। कोई सोचता है कि लड़की खुश है, कोई सोचता है कि वो उदास है। कोई सोचता है कि उसकी आँखें हरी होंगी, कोई सोचता है काली। हर कोई अपनी सोच से इसे पूरा करता है माँ। इसी में तो कला की खूबी है।”
माँ कुछ पल के लिए चुप हो गई। उसकी आँखें रमेश पर टिक गईं। उसने पहली बार जाना कि उसके बेटे ने पेंटिंग में सिर्फ रंग नहीं भरे हैं, उसने लोगों को सोचने का मौका भी दिया है।
उस दिन माँ ने धीरे से उसके सिर पर हाथ फेरा और कहा,
“बेटा, आज मैं समझ गई, कभी-कभी अधूरा छोड़ देना भी किसी को जोड़ देता है।”
रमेश ने पहली बार सुकून से मुस्कुरा कर अपनी अधूरी पेंटिंग को देखा।
वो पेंटिंग अधूरी नहीं थी… वो हज़ारों कहानियों से पूरी थी।
सीख:
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर चीज़ का पूरा होना जरूरी नहीं। कभी-कभी अधूरापन भी दूसरों को सोचने, महसूस करने और जुड़ने का अवसर दे जाता है। कला का मकसद केवल सुंदरता नहीं, बल्कि भावनाओं को जगाना और सोचने पर मजबूर करना भी होता है।
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क्योंकि हो सकता है — किसी को इसमें अपनी अधूरी ख्वाहिशें और छुपी हुई मुस्कान की झलक मिल जाए,
और चेहरे पर वही भूली हुई मुस्कान लौट आए। 🎨😊✨
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क्योंकि क्या पता—इसमें किसी को अपनी खोई मुस्कान, भूली हिम्मत या अपने अधूरे ख्वाबों की झलक मिल जाए।
और दिल में एक नई उम्मीद फिर से खिल जाए।