“Chappal Se Chaand Tak: छोटे गाँव के लड़के की बड़ी उड़ान" inspirational Story
Inspirational Story “Chappal Se Chaand Tak: Gaon Ke Ladke Ki IAS Banane Tak Ki Kahani”
हर सपने की कोई सीमा नहीं होती।
एक छोटे से गाँव में नंगे पैर चप्पल घिसते हुए स्कूल जाने वाला यह लड़का आज IAS बनकर पूरे गाँव का गर्व बन गया। (inspirational story) “Chappal Se Chaand Tak: Gaon Ka Ladka Bana IAS” सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि हर उस इंसान के लिए उम्मीद की किरण है जो हालातों से लड़कर बड़ा सपना देखता है। जानिए कैसे इस लड़के ने गरीबी और मुश्किलों को हराकर अपने सपने पूरे किए, और बना लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत।
मिट्टी की महक (गाँव की शुरुआत)
“जहाँ सपनों से पहले जिम्मेदारियाँ जन्म लेती हैं, वहाँ से एक नई कहानी शुरू होती है…”
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव बिजौली में जन्मा अर्जुन यादव एक साधारण किसान परिवार का बेटा था। मिट्टी से सना बचपन, बिना चप्पल के स्कूल, और दोपहर में खेतों का काम — यही उसकी दिनचर्या थी। माँ चाहती थी कि बेटा पढ़-लिखकर बड़ा आदमी बने, पर हालात कुछ और ही इजाज़त देते थे।
अर्जुन का स्कूल गाँव से 3 किलोमीटर दूर था। बरसात में कीचड़, गर्मी में धूप और ठंड में कोहरा — लेकिन अर्जुन की चाल नहीं रुकती। उसके पास न अच्छे कपड़े थे, न बैग, और किताबें तो कई बार उधार ली जाती थीं। लेकिन उसकी आँखों में एक सपना था — “कुछ ऐसा करूँ कि माँ हँसे, आँसू न आएँ।”
गाँव में बच्चों को जल्दी ही खेतों में काम पर लगा दिया जाता है। लेकिन अर्जुन खेत में भी किताबें ले जाता। वो जानता था कि ये खेत की मिट्टी उसकी जड़ है, लेकिन अगर उड़ान भरनी है, तो जड़ों को ताकत देनी होगी — पढ़ाई के ज़रिए।
एक दिन पिता ने गुस्से में कहा —
“किताबें चबाकर कुछ नहीं मिलेगा अर्जुन, हल पकड़ना सीखो!”
अर्जुन चुप रहा। वो जानता था कि किताबें चबानी नहीं हैं — “जीवन में कामयाबी की रोटी सेंकने की चिंगारी” हैं।
वहीं से अर्जुन की कहानी ने करवट ली। उसने ठान लिया — “अगर कोई रास्ता नहीं है, तो मैं रास्ता खुद बनाऊँगा।”
सपना जो साइकिल से शुरू हुआ
“कुछ सफ़र पैरों से नहीं, हौसलों से चलते हैं… और कभी-कभी एक टूटी साइकिल से भी उड़ान शुरू होती है।”
जब अर्जुन ने गाँव के ही स्कूल से आठवीं पास की, तो उसके गाँव में आगे की पढ़ाई की कोई सुविधा नहीं थी। न कोई अच्छा स्कूल, न शिक्षक, और न ही किताबों की दुकान। अब अगला विकल्प था — 10 किलोमीटर दूर के कस्बे का सरकारी स्कूल।
पिता बोले,
“इतनी दूर? पगला गया है क्या? खेत का काम छोड़ के पढ़ाई करेगा? साइकिल भी ठीक से नहीं चलती।”
माँ ने अपने गहनों में से एक पुरानी चाँदी की बिछिया बेच दी — और अर्जुन को मिल गई एक पुरानी, जंग लगी टूटी साइकिल। हैंडल टेढ़ा, ब्रेक खराब, पर टायरों में अर्जुन का सपना घूम रहा था।
हर सुबह वो 5 बजे उठता, नहाता, घर का थोड़ा काम करता और फिर निकल पड़ता — धूल भरे रास्तों, उबड़-खाबड़ सड़कों और तेज़ धूप को पार करते हुए। रास्ते में बच्चे चिढ़ाते, बड़े लोग हँसते:
“इतनी दूर जाकर क्या कलेक्टर बनेगा?”
“अरे छोड़ बेटा, पढ़ाई किस्मत वालों के लिए होती है!”
लेकिन अर्जुन चुप रहता। वो जवाब नहीं देता था — क्योंकि वो जानता था कि सपनों के जवाब शब्दों से नहीं, मेहनत से दिए जाते हैं।
स्कूल पहुँचकर वह सबसे आगे की बेंच पर बैठता, मन लगाकर पढ़ता। स्कूल में कभी किताबें कम पड़तीं, तो वह लाइब्रेरी से पुरानी फटी हुई किताबें उठा लाता। उसका मन कहता था —
“जिस साइकिल की चेन बार-बार उतरती है, उसी से एक दिन दुनिया का नक्शा बदल सकता है।”
वो रोज़ साइकिल से लौटते समय सूरज की तरफ़ देखता और सोचता —“ये सूरज हर दिन उगता है… तो मैं क्यों नहीं?”
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👣 अर्जुन का सफ़र शुरू हो चुका था… अब बारी थी संघर्ष की आग से तपने की।
संघर्ष की तपिश (struggle)
“कभी-कभी हालात आपको जलाने की कोशिश करते हैं, लेकिन अगर आप ठान लें… तो वही आग आपको तपाकर सोना बना देती है।”
अर्जुन अब कस्बे के स्कूल में 12वीं तक पहुँच चुका था। लेकिन असली परीक्षा स्कूल की नहीं, ज़िंदगी की थी।
घर की माली हालत बिगड़ रही थी — खेत से कमाई नाममात्र की थी, माँ बीमार रहने लगी और छोटे भाई की ज़िम्मेदारी भी अर्जुन पर आ गई। लेकिन उसके सपने अब और भी पक्के हो चुके थे — “UPSC”। वो जानता था ये आसान नहीं, पर नामुमकिन भी नहीं।
रात को जब पूरा गाँव सोता था, अर्जुन खेत के कोने में बने एक टूटे-फूटे छप्पर के नीचे बैठकर पढ़ाई करता।
उसके पास न लाइट थी, न मोबाइल, न इंटरनेट। एक पुराना केरोसिन लैंप था, जिसकी रौशनी कम होती थी, लेकिन उम्मीदें तेज़।
“जैसे-जैसे लैंप की लौ काँपती, अर्जुन की आँखों की चमक और बढ़ जाती।”
बारिश में छप्पर से पानी टपकता, किताबें भीगतीं, लेकिन अर्जुन खुद को समेटकर पढ़ता रहता। कई बार भूखा पेट होता, लेकिन दिमाग़ भूखा नहीं था — वो तो ज्ञान के एक-एक कण को निगलने के लिए बेचैन था।
उसके पास मोबाइल नहीं था, तो वह गाँव की लाइब्रेरी में घंटों बैठता। वहाँ पुरानी किताबें मिलतीं — Laxmikant, NCERT, Spectrum, Dutt & Sundaram की फटी-कटी कॉपियाँ। लेकिन अर्जुन के लिए वे गोल्ड माइन थीं।
“कभी-कभी सोचता – बाकी लड़कों के पास कोचिंग है, गाइड है, मोबाइल नोट्स हैं… और मेरे पास?”
फिर खुद ही जवाब देता – मेरे पास ज़िद है। और ज़िद जब टूटती नहीं, तो किस्मत झुकती है।
पड़ोसी ताना मारते —
“बेटा, ये UPSC-VPSC तुम्हारे बस की नहीं!”
पर अर्जुन अब सीख गया था — शोर से नहीं, सन्नाटों से लड़ना।
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🛤 अर्जुन तप रहा था… लेकिन अब वो दिन दूर नहीं था जब यही आग उसकी उड़ान की हवा बनेगी।
उड़ान (IAS journey)
“जो ज़िंदगी भर गिरा हो, वही उड़ान का असली मतलब समझता है… और अर्जुन अब गिरते-गिरते उड़ना सीख चुका था।”
अर्जुन ने UPSC का सपना देखना तब शुरू किया जब उसके पास न मोबाइल था, न गाइडेंस, न दिल्ली जाने के पैसे। लेकिन उसके पास था — ज़िद, हौसला और जुनून।
पहला प्रयास: वो प्रीलिम्स तक भी नहीं पहुँच सका।
लोग बोले — “हिम्मत कर रहा है, पर ये परीक्षा तेरे जैसे गाँव वालों के लिए नहीं बनी।”
दूसरा प्रयास: प्रीलिम्स पास, लेकिन mains में फेल।
किसी ने कहा — “बस अब छोड़ दे बेटा, किस्मत नहीं है तेरे पास।”
तीसरा प्रयास: Mains भी निकल गया, Interview में रह गया।
अब खुद अर्जुन भी टूटने लगा था… लेकिन माँ ने कहा —
“तू हार नहीं सकता अर्जुन… क्योंकि तूने सपनों के लिए जीना सीखा है, नींद के लिए नहीं।”
चौथे प्रयास में अर्जुन को सिर्फ़ 1 अंक से बाहर कर दिया गया।
उस रात अर्जुन अकेले खेत में बैठा, आसमान की तरफ़ देखा और बोला —
“शायद भगवान कह रहे हैं – तू तैयार तो है… लेकिन उड़ मत, उड़ान बन जा!”
वो नहीं टूटा। एक और साल, और भी कठोर संघर्ष…
पाँचवें प्रयास में, रिज़ल्ट आया…
रोल नंबर देखा… और कुछ पल बाद पूरी दुनिया बदल चुकी थी:
“अर्जुन यादव – All India Rank 48 – Indian Administrative Service (IAS)”
पूरा गाँव जमा हो गया।
वही लोग जो पहले कहते थे “क्या कलेक्टर बनेगा?”
अब कहते थे – “हमारा अर्जुन अब जिले का राजा बन गया!”
गाँव की दीवारों पर उसके स्वागत में बैनर लग चुके थे।
माँ की आँखों में आँसू थे — पर इस बार ये आँसू हार के नहीं… सफलता के थे।
“उसने सिर्फ़ परीक्षा पास नहीं की थी… उसने पूरे गाँव के सपनों को मंज़िल दी थी।”
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💫 एक लड़का जो मिट्टी में पला, अब उस मिट्टी का ताज बन चुका था।
🏆असली जीत (Youth inspiration)
“सच में जीत तब होती है जब तुम अकेले नहीं उड़ते… बल्कि दूसरों को भी उड़ने की ताक़त दे जाते हो।”
IAS बनने के बाद अर्जुन की पहली पोस्टिंग एक पिछड़े जिले में हुई —
पर उसका दिल तो अब भी गाँव बिजौली में धड़कता था।
वो जानता था कि असली बदलाव फाइलों में नहीं, फर्ज़ में होता है।
कुछ ही महीनों में अर्जुन ने छुट्टी लेकर अपने गाँव का रुख किया।
सारा गाँव स्वागत के लिए पलकें बिछाए खड़ा था।
उसने कोई बड़ी कार में नहीं, पुरानी टूटी साइकिल से गाँव में एंट्री ली — वही साइकिल जिससे उसने सपने देखे थे।
उसने सबसे पहले वो काम किया जो उसके दिल में सालों से था:
“गाँव की पहली डिजिटल लाइब्रेरी”
एक ऐसी लाइब्रेरी जहाँ बच्चों को मोबाइल, लैपटॉप, किताबें और UPSC से लेकर सामान्य ज्ञान तक का मुफ्त अध्ययन मिलेगा।
लाइब्रेरी के उद्घाटन पर उसने एक छोटी सी स्पीच दी —
लेकिन वो शब्द सीधे दिल को छूते थे:
“अगर मेरी तरह किसी की चप्पल घिस रही है, तो डरना मत…
क्योंकि यही घिसी हुई चप्पल एक दिन तुम्हें चाँद तक पहुँचा सकती है।”
“रातों को जागो, सपनों को पकड़ो, और इस मिट्टी को अपनी ताक़त बनाओ। UPSC कोई परीक्षा नहीं, ये तो तुम्हारे विश्वास की ऊँचाई है!”
अब गाँव के बच्चे अर्जुन को “सर” कहकर बुलाते हैं।
वो बच्चों को खुद पढ़ाता है, उन्हें तैयारी के टिप्स देता है, और कहता है:
“मैं अकेला निकला था… अब तुम सब मेरी उड़ान हो।”
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🌟 अंत नहीं… ये तो शुरुआत है
अर्जुन की कहानी सिर्फ़ सफलता की नहीं, संघर्ष को गले लगाकर उसे अवसर में बदलने की कहानी है।
“कभी कोई भी हालात तुम्हारे सपनों से बड़ा नहीं होता… बस एक बार ठान लो, फिर दुनिया झुकती है!”
💛 Call-to-Action:
अगर आप भी किसी अर्जुन को जानते हैं, तो ये कहानी ज़रूर साझा करें।
शायद आज उसका मन हार मान रहा हो… और आपकी एक शेयर उसे फिर से खड़ा कर दे।
📚💪Inspirational Story